जालंधर (प्रदीप वर्मा) : Cheap Politics लीजिए जनाब, अवैध कॉलोनी, नशा, जुआ, चोरी, विकास कार्यों में धांधली आदि के विषयों को छोड़कर आपको नए विषय पर खबर पढ़ाते हैं। यह खबर है जालंधर में घास की तरह दिनोंदिन फैल रहे छुटभैये नेताओं की फौज की। यह फौज अलग-अलग रूप से शहर में तैनात है। कोई फलां संगठन के प्रधान अधीन है तो कोई फलां प्रधान के अधीन। बस मकसद एक अपनी बल्ले बल्ले करवानी।
Poor Politics – पारिवारिक झगड़ों को सड़क पर लाकर खेलते हैं सेटिंग का खेल
ये संगठन खुद को लोगों का हमदर्द होने का दावा करते हैं लेकिन हमदर्दी के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाना इनका मुख्य मकसद होता है। न जो कितने ही संगठन जालंधर में बिना पंजीकरण के चल रहे हैं। सिर्फ वोटबैंक और अफसरशाही से सेटिंग के बीच इन संगठनों का संचालन जारी है। कुछ संगठन तो ऐसे हैं जोकि लोगों के पारिवारिक झगड़ों को सड़क पर लाकर सेटिंग का खेल खेलते हैं और फिर जब राजीनामे या पर्चे की बारी आती है तो अपना हिस्सा लेकर रफूचक्कर हो जाते हैं।
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कुछ प्रधानों ने तो शहर में धक्के के साथ लगवाई हुई हैं अपनी रेहडिय़ां व दुकानें
Cheap Politics in Jalandhar कुछ संगठनों के प्रधानों ने तो शहर में अपनी रेहडिय़ां, दुकानें आदि धक्के के साथ लगवाई हुई हैं और हर हफ्ते वहां से वसूली करते हैं। इन छुटभैये नेताओं ने मकसूदां मंडी, रैनक बाजार, शेखां बाजार, चौपाटी, किशनपुरा चौक, रेलवे स्टेशन रोड आदि में अपना-अपना सिक्का जमाया हुआ है। जनकल्याण के नाम पर ये जनता का बेड़ागर्क कर रहे हैं। दरअसल भोले भाले लोग इनकी बातों में आकर अपने मामले इनको सौंप देते हैं और फिर ये लोग उनका शोषण करते हैं।
कई लोग तो बदनामी के डर से छुटभैये नेताओं के खिलाफ मोर्चा नहीं खोलते। बस्ती बावा खेल में कुछ छुटभैये नेताओं ने संगठन खोले हुए हैं और थानों में सेटिंग करके ये लोगों पर रौब जमाते हैं। अगले अंक में इन संगठनों की पूरी फेहरिस्त पाठकों के समक्ष रखी जाएगी।
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