प्रदीप वर्मा
जालंधर – Election or life कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच चुनाव होना क्या सही है? अगर सही है तो फिर लोकतंत्र के महायज्ञ में आहुति डालिए। पर ये समझ लें कि ये आहुति सरकार चुनने तक की प्रक्रिया में शामिल होने से पहले खुद को कोरोना से बचाने की भी है। कोरोना से बचाव की गाइडलाइंस में सबसे जरूरी निर्देश है भीड़ से बचना और सोशल डिस्टेंसिंग रखना। अब अगर चुनाव प्रक्रिया में भीड़ का हिस्सा आप बनते हैं तो फिर आप कैसे कोरोना से बच सकते हैं।
रोज आ रहे हैं डेढ़ लाख से जयादा कोविड केस
आपके प्रिय नेता जी रैली करेंगे, जनसभा करेंगे और नुक्कड़ बैठकें करेंगे तब जाकर आप लोकतंत्र के महायज्ञ में आहुति का हिस्सा बनेगा। नेताओं के लिए इन बैठकों, जनसभाओं में भीड़ मायने रखती है न कि कोरोना से बचाव की गाइडलाइंस। कल देश में डेढ़ लाख से अधिक कोरोना केस सामने आए। जालंधर की बात करें तो कल 300 से ज्यादा मरीज रिपोर्ट किए गए। ऐसे में कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या के बीच आप अगर चुनावी जनसभाओं में जाते हैं तो फिर आपको कोरोना भी मिलेगा।
हालांकि पिछले साल कोरोना महामारी के दौरान चुनाव आयोग ने कई राज्यों के पंचायत चुनाव और कई विधानसभा और लोकसभा सीटों के उपचुनावों को टाल दिया था । जब पिछले साल कोविड के हालत बिगडऩे लगे तो तुरंत यह मुद्दा चुनाव आयोग में उठा कि इस महामारी में चुनाव कैसे कराए जाएँ। एक अधिकारी कहते हैं, उस समय दक्षिण कोरिया एक शानदार मिसाल था जिसने महामारी के दौरान भी चुनाव कराए थे। हमने कहा कि हमें यह देखना चाहिए कि विभिन्न देशों में कैसे चुनाव प्रबंधन किया जा रहा है और क्या उन तरीकों में से कोई हमारे लिए कारगर हो सकता है।
Election or life एक अन्य रिटायर्ड चुनाव आयुक्त कहते हैं कि पिछले साल जब एक राजनीतिक दल (बीजेपी) ने बिहार चुनाव से कई हफ्ते पहले एक बड़ी वर्चुअल रैली की, तो बहुत से राजनीतिक दलों ने आयोग को लिखित में इस पर विरोध जताया और कहा कि कई दलों के पास वर्चुअल रैली करने के लिए संसाधन नहीं हैं। वैसे एक और बात यह कि अगर स्थिति ऐसी है कि लोगों की जान पर खतरे की आशंका है, तो आयोग कह सकता है कि हम चुनाव कराने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन चुनाव आयोग के निष्पक्ष होने के लिए, यह मूल्यांकन स्वतंत्र रूप से आयोग नहीं कर सकता है और इसमें राज्य सरकारों के परामर्श की जरूरत है।
टीकाकरण का बुरा हाल – कहीं कोरोना को बढ़ावा देना न सबित हो जाए चुनाव
Election or life 3 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले पंजाब में 1.73 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की पहली डोज़ लग चुकी है, लेकिन डबल वैक्सीनेशन वाले लोगों का आंकड़ा एक करोड़ से भी कम है। यहां अब तक 96 लाख 70 हजार 41 लोगों को दोनों डोज लगी हैं, जो कुल आबादी का 50 फीसद भी नहीं है. उत्तराखंड जरूर इस मामले में बेहतर स्थिति में दिखता है। यहां एक करोड़ दस लाख से ज्यादा की आबादी है, जिनमें से लगभग 79 लाख को पहली और 65 लाख से ज्यादा लोगों को दोनों डोज लग चुकी हैं. अगले कुछ हफ्तों में अगर राज्य में वैक्सीनेशन ड्राइव को और तेज किया जाए तो यहां की 80 फीसदी आबादी का टीकाकरण होना संभव है।
लेकिन गोवा और मणिपुर के आंकड़े इससे अलग हैं। डेढ़ करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या वाले गोवा में 13 लाख 16 हजार से ज्यादा लोगों को पहला और 11 लाख 17 हजार से अधिक लोगों को दूसरा टीका लगा है। वहीं 31 लाख की जनसंख्या वाले मणिपुर में 13 लाख 32 हजार से कुछ ही ज्यादा लोगों का वैक्सीनेशन हुआ है। डबल डोज का आंकड़ा तो 10 लाख ही है। साफ है ये दोनों राज्य भी 80 पर्सेंट लोगों के कंप्लीट वैक्सीनेशन से काफी दूर हैं। ऐसे में चुनाव आयोग द्वारा चुनाव करवान कहीं कोरोना को बढ़ावा देना न सबित हो जाए।
दुनिया में कोरोना के कारण कब टले चुनाव : –
- दुनिया भर में 79 देशों ने कोरोना की वजह से राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय चुनाव टाले हैं। 42 देशों में राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह टाला गया है।
- कोरोना के बावजूद 146 देशों में चुनाव कराए गए हैं। इनमें से 124 देशों में राष्ट्रीय चुनाव या जनमत संग्रह हुआ है। बाकीयों ने इसे टाल दीया।
- रूस में संवैधानिक राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह 22 अप्रैल 2020 को होना था। इसे 1 जुलाई 2020 तक टाला गया। रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग ने 3 अप्रैल 2020 को 5 अप्रैल से 23 जून के बीच होने वाले सभी चुनाव स्थगित कर दिए। रूस में इस दौरान स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले 94 चुनावों को टाल गया।
- बोलीविया में आम चुनाव 3 मई 2020 को होने थे।पहले इन्हें 6 सितंबर 2020 तक के लिए और फिर 18 अक्टूबर 2020 तक टाला गया। क्षेत्रीय चुनाव मार्च 2020 से टालकर आम चुनावों के साथ कराए गए।
- ईरान में संसदीय चुनावों का दूसरा दौर 17 अप्रैल 2020 से 11 सितंबर 2020 तक टाला गया।
- सीरिया में संसदीय चुनाव 13 अप्रैल 2020 से 19 जुलाई 2020 तक टाले गए।
- श्रीलंका में संसदीय चुनाव अप्रैल 2020 में होने थे, लेकिन अगस्त 2020 में कराए गए।
- ऑस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स राज्य के चुनाव पहले सितंबर 2020 से सितंबर 2021 तक और फिर दिसंबर 2021 तक और अब मई 2022 तक के लिए टाल दिए गए।
- इंडोनेशिया में स्थानीय चुनाव सितंबर 2020 से दिसंबर 2020 तक टाले गए।
- चिली में संवैधानिक जनमत संग्रह 26 अप्रैल 2020 को होना था। पहले इसे 25 अक्टूबर 2020 चाला गया।संविधान आयोग के चुनाव 10-11 अप्रैल 2021 से 15-16 मई 2021 तक के लिए टाले गए ।
- सोमालिया में संसदीय चुनाव 27 नवंबर 2020 को और राष्ट्रपति का चुनाव 8 फरवरी 2021 से पहले होना था। इन्हें कई बार टालकर 25 जुलाई और 10 अक्टूबर 2021 को कराया गया।
- ब्राजील में नगरपालिका चुनाव अक्टूबर 2020 को होने थे. इन्हें नवंबर 2020 तक टाला गया।
भारत में क्यों नहीं टल सकते चुनाव ?
सवाल ये पैदा होता है कि अगर दुनिया भर में कोरोना के चलते चुनाव टाले जा सकते हैं तो फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है। इसकी रक्षा के लिए अगर चुनाव टालना जरूरी हो तो ये फैसला करने में हिचकना नहीं चाहिए। चुनाव वाले पांच राज्यों में सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश को कोरोना प्रभावित राज्य घोषित किया जा चुका है। ऐसे हालात में चुनाव कराना लोगो का जीवन खतरे में डालना ही साबित होगा।